गांधीवादी नेता एवं पूर्व श्रममंत्री श्यामसुंदर पाटीदार का 25 जुलाई को 107वां जन्मदिन है।इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार और गाँधीवादी कार्यकर्ता विक्रम विद्यार्थी ने अपने लेख मे स्व. श्याम सुबदर पाटीदार का जन्मदिवस काँग्रेस के लिए आत्म मंथन दिवस के रूप मे मनाने का सुझाव दिया है ।
विक्रम विद्यार्थी ने गांधीवादी नेता एवं पूर्व श्रममंत्री श्यामसुंदर पाटीदार के बारे मे अवगत करवाते हुए बताया कि जावद के लासूर में जन्म लेकर मंदसौर को कर्मभूमि बनाने वाले स्व. पाटीदार मजदूरों, किसानों, वंचितों, हरिजनों, दलितों आदि की आवाज बने। वे 6 बार मंदसौर विधानसभा का चुनाव जीते। इन्हीं वर्गों की कृपा, सहयोग से कांग्रेस में एक स्थान से जीत का कीर्तिमान स्थापित किया। संसदीय क्षेत्र के नेता कांग्रेस को मजबूत बनाने के लिये आत्म निरीक्षण करेंगे ?
यह सब इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि नवम्बर 23 में राज्य विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। पिछले दो दशकों से राज्य में भाजपा काबिज है। पिछली बार आम जनता ने तो भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को अधिक सीटें दी थी किन्तु ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण 15 माह बाद ही सत्ता गंवानी पड़ी थी। इस बार होने वाले चुनाव के लिये कांग्रेस के कमलनाथ, दिग्विजयसिंह के साथ भाजपा के शिवराजसिंह, नरेन्द्रसिंह तोमर तथा केन्द्रीय मंत्रियों की फौज चुनाव मुकाबले में उतर रही है। प्रियंका राहुल गांधी के मुकाबले नरेन्द्र मोदी, अमित शाह सत्ता पाने के लिये कूटनीतिक दाव पैच खेलने में जुट गए हैं, तैयारियां दोनों तरफ से चल रही हैं।
कांग्रेस पक्ष के जानकार बताते हैं कि संसदीय क्षेत्र में 3 से 4 सीटें कांग्रेस पक्ष में विधानसभा चुनाव में आती है तो कांग्रेस की सरकार बनने के अवसर बढ़ जाते है। पहले भी ऐसा हुआ है किन्तु जीत तभी होगी जब टिकट जीतने वाले एवं नए उम्मीदवारों को मिले। दशकांे से कब्जा जमाए नेताओं जिनका जनाधार नहीं है से मुक्ति मिले। नगरपालिका, नगर पंचायतें, जनपदें तथा जिला पंचायत जिता नहीं पाने वाले नेताओं से मुक्ति मिले। कांग्रेस नेतृत्व नकली नेताओं को कड़वी दवा दे तभी इस अंचल में कांग्रेस मजबूत हो सकेगी।
श्री पाटीदार इसलिये मजबूत साबित हुए उनके समकक्ष उस जमाने के नेता मात्र दो-दो बार कांग्रेस टिकट पर लोकसभा विधानसभा चुनाव जीत पाए जबकि श्री पाटीदार छः बार विधानसभा चुनाव जीते। दो बार भी उन्हें षड़यंत्र की वजह से पराजय झेलनी पड़ी। कांग्रेस की दूसरी पीढ़ी भी एक बार से लेकर चार बार (केवल एक नेता) जीत पाए।
सोशल मीडिया, ट्विटर, फेसबूक, अखबारबाजी, धरने आंदोलन के कांग्रेस मजबूत होती तो 20 साल से सड़क पर नहीं रहती। 90 प्रतिशत मौजूदा नेता इन तमाशों के जरिए अपना भविष्य का सपना संजोकर बैठे है। वे गांधीजी की माला नाम जपते हैं उनके कर्म को अपने जीवन में नहीं उतार रहे है। 40-50 नेताओं के अखबारों में नाम छपने से कांग्रेस मजबूत नहीं हो रही। जन समस्याओं से आम जनता त्रस्त है। ऊपर के निर्देश पर खानापूर्ति से भी दल मजबूत नहीं होगा।
चुनाव पूर्व यह आत्म विश्लेषण का समय है। संसदीय क्षेत्र में मौजूदा नेतृत्व की परीक्षा होने वाली है। 20 वर्षों में उन्होंने जनता के पक्ष में संघर्ष किया है, इस बात का उत्तर मतदाता देकर हार जीत का परिणाम देंगे। आत्मविश्लेषण, आत्म निरीक्षण ये गुण तमाम नेताओं के जेहन में होता और उसके अनुरूप यदि आचरण होता तो जनता कांग्रेस को मौजूदा परिदृश्य से पीछे नहीं रहने देती।